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नई दिल्ली.
रंगों और आपसी भाईचारे का पर्व होली.होली हम सभी बड़े धूम धाम से मानते है लेकिन क्या आप ये जानते है की आखिर इसे क्यों मनाया जाता है. चलिए हम आपको बताते है. वैसे तो होली को लेकर कई कहानी और किस्से प्रचिलित हैं, इसमें बताया जाता है की आखिर होली क्यों मनाई जाती है. लेकिन इनमें चार कहानी हैं जिन्हें मानने वाले लोग अधिक है. आइये जानते है कौन सी है कहानी.
कहानी 1
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प्रह्लाद और होलिका का प्रसंग सभी को पता है. ऐसा माना जाता है कि होली पर्व का प्रारंभ प्रह्लाद और होलिका से जुड़ा है. दोनों की कथा विष्णु पुराण में मिलता है।.हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान से वरदान प्राप्त किया कि वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था, न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से, न पशु से. वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी, परन्तु पुत्र प्रह्लाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बहुत यातनाएं दीं परन्तु उसने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी. अंत में दैत्यराज ने होलिका को प्रह्लाद का अंत करने के लिए प्रह्लाद सहित आग में प्रवेश करा दिया परन्तु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई.
कहानी 2
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कंस को जब आकाशवाणी द्वारा पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेंगा तो कंस ने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया. कारागार में जन्मे देवकी के छ पुत्र को कंस ने मार दिया। सातवें पुत्र शेष नाग के अवतार बलराम थे जिनके अंश को जन्म से पूर्व ही वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया था. आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। वसुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए. कंस उस कन्या को मार नहीं सका और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने तो गोकुल में जन्म ले लिया है. तब कंस ने उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा. वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया. यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था.
कहानी 3
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शिव पुराण के अनुसार, हिमालय पुत्री पार्वती शिव से विवाह करने के लिए कठोर तप कर रही थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे. इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था. इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव जी की तपस्या भंग करने भेजा परन्तु शिव के तपस्या में बांधा आने से वे क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया।शिव जी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया. इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है.
कहानी 4
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होली का त्यौहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है. बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है. मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है. बरसाने और नंदगांव की लठमार होली जगप्रसिद्ध है. होली पर होली जलाई जाती है अहंकार की, अहं की, वैर-द्वेष की, ईष्र्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम.

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