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कला सीखने का कोई शार्टकट नहीं होता। इसके लिए कड़ी मेहनत करना पड़ती है। थियेटर में काम करके आपके सोचने समझने की दृष्टि व्यापक हो जाती है। एक कलाकार के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि वह अपने किरदार को अच्छे से समझकर प्रदर्शन करे। यह सिर्फ थियेटर से ही संभव है। लेकिन वर्तमान में युवा शार्टकट के पीछे भाग रहे हैं। यह कहना है बॉलीवुड कलाकार एवं चाणक्य नाटक का बीते 27वर्षों से मंचन कर रहे मनोज जोशी का। उन्होंने इ इंटरव्यू.इन से फोन पर बातचीत की।

सवाल: थियेटर से कब और कैसे जुडे़?
जवाब: स्कूल से ही थियेटर का लगाव था। मैंने थियेटर देखना शुरू किया इसके बाद कॉलेज पहुंचा तो थियेटर करना शुरू कर दिया।
सवाल: परिवार में से किसी ने थियेटर करने से रोका?जवाब: मां को जब पता चला कि मैं थियेटर करने लगा है तो उन्होंने रोका। उनका मानना है कि थियेटर करने से मैं बिगड़ जाऊंगा। वे चाहती थीं कि मैं पढ़ लिखकर नौकरी करूं।
सवाल: चाणक्य का पात्र क्यों पसंद है।
 जवाब: कॉलेज में जब पहुंचा तो चाणक्य को पढऩा शुरू किया। चाणक्य के पात्र में कुछ बातें बहुत पसंद आईं। उन्होंने बिना किसी लालच के राज्य हित में कार्य किया, उनका मानना था कि यदि कोई राजा है तो उसे प्रजा का ध्यान रखना चाहिए।
सवाल: पहली बार चाणक्य कब किया।

जवाब: गुजरात में पहली बार १९९० में चाणक्य किया। इस दौरान नरेन्द्र मोदी आए थे। बनारस में १०००वां मंचन किया गया। इसमें भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आए थे।

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