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कवि संतोष आनंद से विशेष बातचीत
कवि सम्मेलन में से कविताएं गायब हो गईं हैं। कविताओं और गीतों की जगह फूहड़ द्विवार्थी चुटकुलों ने ले लिया है। पुराने गीतों को सुनने में रस मिलता था लेकिन आज के गीत सिर्फ शोर करते हैं। यह कहना है मशहूर गीतकार संतोष आनंद का।
फिल्मों का स्तर भी गिरता जा रहा है। इनमें मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए.., शीला की जवानी आदि तड़क भड़क गानों को फिल्माया जा रहा है। जबकि आज से तीन दशक पहले तक गीत फिल्म पर किरदार और परिस्थति को देखकर फिल्माए जाते थे।
तीन महीने तक मनोज कुमार रुके घर
मेने जीवन में दो ही लोगों को गुरू माना। एक मनोज कुमार और दूसरे अटल विहारी बाजपेयी। मनोज कुमार तीन महीने तक घर रुके और मुझे बम्बई(अभी मुंबई) लेकर गए। अटल जी मुझे कविजी कहते थे। दोनों ने ही मुझे बहुत प्यार दिया। मैंने कभी भी अटल विहारी बाजपेयी से करीबी को लेकर भुनाया नहीं।
मन दुखी होता है
गीत को लेकर जिस तरह से वर्तमान में उल्टे सीधे प्रयोग किए जा रहे हैं उन्हें देखकर मन दुखी होता है। मैंने गीत नहीं मिले बल्कि तपस्या की है। मैं चाहता हूं कि नई पीढ़ी भी पुराने दौर के गीतों की ओर लौटे।

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