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नई दिल्ली.
अगर इरादा पक्का हो और मन में जीतने का जज्बा हो तो भले ही कितनी भी बडी कठिनाई सामने आ जाए सफलता जरूर मिलती है. इस बात को सही साबित कर दिखाया है उम्मुल खेर ने. जिन्होंने लाइलाज बीमारी से तो जीत हासिल की और यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन यानि की यूीपीएससी में भी सफलता प्राप्त करते हुए 420वीं रैंक प्राप्त की.

झुग्गियों में पली बढीं

देश का हर एक नौजवान का सपना होता है कि वह सिविल सर्विस की तैयारी करे और सफलता प्राप्त करे. इसके लिए प्रतिवर्ष लाखों अभ्यार्थी तैयारी भी करते हैं. लेकिन सफलता हर किसी को प्राप्त नहीं होती. उम्मुल खेर जो कि राजस्थान की हैं और महज 5 साल की उम्र में ही पिता के साथ दिल्ली आ गईं. उम्मुल बताती हैं कि उनके परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी. वे दिल्ली में निजाममुद्दीन के पास ही बनीं झुग्गियों में रहने लगीं.

ummul kher got 420 rank in upsc, theinterview.in

8 बार हुई सर्जरी

पिता फेरी लगाकर सामान बेचने का काम करते थे. उम्मुल को लाइलाज बीमारी ब्रिटल बोन डिसीज है. जिसमें उनकी हड्डियां इतना कमजोर हो गईं कि जरा सी चोट लगने पर फ्रेक्चर हो जाता है. अभी तक उन्हें 16 बार चोट लगी और ८ बार सर्जरी हो चुकी है.

दिल्ली में जब निजामुद्दीन के पास से झुग्गियां हटाईं गई तो उम्मुल और उनके परिवार से रहने का ठिकाना भी छिन गया. इसके बाद परिवार त्रिलोकपुरी में एक कमरे में रहने लगा. उम्मुल बताती हैं कि पुराने ख़यालात वाले मुस्लिम परिवार में माना जाता था कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ने-लिखने या बाहर जाने की जरूरत नहीं है. लड़की ज्यादा पढ़ लिख जाए तो वह बड़ों का अदब करना भूल जाती है, उसका चरित्र खराब हो जाता है. वगैरह…वगैरह.

मेरी नई मां ने कहा कि मुझे वापस राजस्थान भेज दिया जाएगा. चूंकि मेरे पैरों में तकलीफ़ थी इसलिए घरवाले चाहते थे कि मैं सिलाई का काम सीखूं.
जब कक्षा आठ में पहुंची तो घर के लोग उनकी पढ़ाई बंद कराने के लिए कहने लगे. लेकिन बकौल उम्मुल उन्होंने यह इरादा कर लिया था कि वे पढ़ेंगी जरूर और अगर पढाई नहीं की तो वे मर जाएंगी.

बच्चों को पढ़ाया ट्यूशन

उम्मुल को पढऩे की ललक जाग चुकी थी इसके लिए उन्हें पैसो की जरूरत थी. उन्होंने आसपास के रहने वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इससे उन्होंने 80 से 100 रुपए मिल जाते थे. यह सिलसिला जारी रहा. नवीं से ही वे अलग रहने लगीं और पढ़ाई जारी रखी. उम्मुल दिन में स्कूल जाती थीं और शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं.

जेएनयू ने बदल दिया जीवन

उम्मुल बताती हैं कि जेएनयू में एडमिशन लेना ही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था. जेएनयू से उन्होंने इंटरनेशनल रिलेशंस से एमए किया. जेएएनयू में उन्होंने सभी सुविधाएं मिलीं. यहां पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकलांग समुदाय का नेतृत्व किया. वे एक साल जापान भी रहीं. यहीं उन्हें लगा कि वे आईएएस की तैयारी करेंगी.

उम्मुल कहती हैं कि अगर आप खुद में विश्वास करें और जुनून के साथ कोई भी काम करें तो सफलता निश्चित मिलती है. उन्होंने कहा कि जो भी नकारात्मक पक्ष है उसके बजाए सकारात्मक पक्ष को इतना मजबूत बनाएं कि उसके सामने सभी चीजें बौनीं हो जाएं.

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